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Thursday, 28 February 2013

धुंधली तस्वीरें ......

शादी को दो साल हो चुके है, अब तो 2 माह की पारी भी है, और 'वो' भी ठीक-ठाक है। गलतियों पर समझा देते है और कुछ अच्छा हुआ तो हंस भी देते है। उनमे दिखावा नहीं है, और जहाँ दिखावा नहीं वहां कोई फरमाइशें भी नही। ज़िन्दगी सुकून से कट रही है। दिन भर काम-काज में निकला जाता है और रात बिस्तर में। वैसे तो सारी ख़ुशी ऊपर वाले ने दे दी है, इनको मेरी ज़िन्दगी में भेज कर। लेकिन कभी-कभी तुम्हारा ख्याल जेहन में आ ही जाता है, कि तुम होते तो शायद खुशियाँ दो गुनी हो जाती 
ये भी मेरा उतना ही ख्याल रखते है, जितना तुम रखते थे, फर्क सिर्फ इतना है कि इनको प्यार जताना आता है और तुमको नहीं। तुम तो कई-कई महीनो गाएब रहते थे, न फ़ोन न मैसेज। जब भी तुमसे मिलने का मन करता था तो मंदिर में जेक बैठ जाया करती थी, और उस पत्थर की मूरत में तुम्हारा प्रतिबिम्ब देखकर खुश हो जाया करती थी। मेरे लिए तो तुम्ही मेरे भगवान् थे। और फिर एक दिन पापा एक लड़के की तस्वीर हाथों में थमा के बोले ''लड़का अच्छा है।'' मै भी कुछ विरोध न कर सकी, उस रात मै सो न सकी, सारी रात रोती रही और बार-बार दरवाज़े की तरफ देखती कि काश कहीं से तुम आ जाओ और मुझे यहाँ से ले जाओ। मैंने भी हालात से समझौता कर लिया और अगली सुबह नम आखें लिए हुए माँ को अपना जवाब दे दिया।
अब जब मै उन दिनों के बारे में सोचती हूँ तो लगता है कहीं न कहीं मैंने ठीक ही किया था, तुम्हारे भरोसे और तुम्हारे इंतज़ार में मै अपनी सारी ज़िन्दगी नहीं काट सकती थी। लेकिन रह-रह कर तुम्हारा ख्याल जेहन में आता रहा, कि तुम कैसे होगे? कहाँ होगे? और पारी के आने के बाद ख्याल जैसे धुंधले पड़ने लगे।  मेरी सहेली तुम्हारे बारे में  बिल्कुल ठीक कहती थी, कि जो लड़का खुद का ख्याल न रख सके वो तुम्हारा क्या रखेगा, और मै उसकी इस बात से उलझ कर रह जाती थी। कि कोई इतना लापरवाह कैसे हो सकता है, कभी-कभी मुझे लगता है कि हमारे बीच जो कुछ भी था, बस एक आकर्षण था, तुम मेरी तरफ और मै तुम्हारी तरफ बेबस ही खिचती चली गयी।
आज तुम्हारी बहुत याद आ रही थी, इसलिए घर के पास वाले मंदिर गयी थी, काफी देर बैठी रही, लेकिन सुकून नहीं मिला, शायद वक़्त के साथ-साथ तस्वीर भी धुंधली हो गयी है। उम्मीद करती हूँ कि तुम आज कहीं अच्छी जगह होगे, और सुकून की ज़िन्दगी जी रहे होगे, पता नहीं तुम्हे मेरा ख्याल आता भी होगा या नहीं। कहीं न कहीं ये हमारे प्यार की जीत है, जो मै आज भी तुम्हे याद करती हूँ, लेकिन अपनी इस जीत पर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हूँ। काश एक बार तुमसे मिलकर तुम्हे जी भर कर देख लूँ, मानती हूँ कि ये गलत है, मै शादी-शुदा हूँ और शायद तुमने भी शादी कर ली होगी, लेकिन फिर भी जो तस्वीरे वक़्त के साथ धुंधली हो गयी है, वो फिर से ताज़ा हो जाएँगी।

Tuesday, 26 February 2013

आदत....

         यकीन मानो जो कुछ भी कहा बस गुस्से मे ही कहाक्या करे तुम पर इतना गुस्सा जो  रहा था। तुम्हे चोट पहुँचाने या दर्द देने की मेरी कोई मंशा नहीं थीबस तुम्हारा नाम मोबाइल पर फ़्लैश हुआ और मेरा गुस्सा सातवें असमान पर। और क्यूँ  करे तुम पर गुस्सा तुम हो इस लायक आज पुरे दो महीने बाद तुमने फ़ोन किया थाक्या इन साठ दिनों में तुम्हे मेरी कभी याद नहीं आईएक पल के लिए भी तुम्हे नहीं लगा की हमसे बात कर लेंऔर आज फ़ोन करके पूछते हो ''कैसी हो ?'' तुमको क्या लगता हैकैसी होउंगी मै ? अच्छी या बुरी हालात मेंऔर तुमको इससे फर्क भी क्या पड़ता हैकि मै किस हालात में हूँ।
       
          माना की हम दोस्त है और उस रिश्ते तक हम नहीं पहुंचे हैलेकिन फिर भी क्या एक दोस्त अपने दोस्त की हाल-खबर नहीं ले सकताऔर जब मै कोशिश करती हूँ तब तुम कभी फ़ोन नहीं उठातेकभी-कभी लगता है जानबूझ कर फ़ोन नहीं उठाते होमन तो करता है तुम्हारे फ़ोन में घुस कर तुम्हारा मुहं तोड़ दूँ।
        
          कल गयी थी मै तुम्हारे फ़्लैट पर लेकिन ताला लगा देख कर वापस  गयीपहले तो हिम्मत हुई की आस-पास के लोगो से तुम्हारे बारे में पूछूँ पर फिर लगा किस हैशियत से तुम्हारे बारे में पूछूंगी ? गलती तुम्हारी भी नहीं हैतुम हर सम्बंधों की सीमा रेखा जानते हो और उसी में खुश रहना भीलेकिन मेरा क्यामै तो अपने इस रिश्ते को एक नाम देना चाहती हूँएक दूसरी पहचान देना चाहती हूँ और कही  कही तुम्हे भी पता है ऐसा मुझे लगता है। कही इसी लिए तो तुम मुझसे ........निखिल ये दिल सिर्फ धडकने के लिए नहीं होते हैये भी किसी से जुड़ना चाहते हैये भी कुछ महसूस करते हैऔर शायद मेरा दिल तुमसे जुड़ गया हैतुमको महसूस करने लगा है। जानते होहर एक अच्छे रिश्तों की शुरुआत दोस्ती से होती है बाद में वो मुकम्मल होते है। और आज मै कबूल करती हूँ कि मै तुम्हे चाहती हूँ। तुम्हारी तमाम हरकते जो मुझे अच्छी नहीं लगती थीउनको भी जब अकेली होती हूँ तो सोच कर चेहरे पर मुस्कान  जाती है। 
      
          पर मुझे तुमसे शिकायतें भी बहुत हैजो शायद जायज भी हैएक लड़की होने के नाते मेरे पास शिकायतों का एक पुलिंदा है पर मै आज उन सारी शिकायतों को दरकिनार करती हूँ। मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिएमुझे नहीं जानना कि मेरा और तुम्हारा भविष्य कैसा होगामुझे नहीं जानना की ये रिश्ता मुकम्मल होगा भी या नहींबस दो घडी तुमसे बात कर लूँ मेरे लिए वही बहुत हैलेकिन तुम्हारा कुछ अता-पता हो तब तो मै तुम से बात करूँ। पिछली मर्तबा फ़ोन किया था कि कहीं मिलते है। एक साल होने को  रहा तुमसे मिले हुएऔर फिर मै तुम्हारा हर दिन हर पल इंतेज़ार करती रहीलेकिन  तुम आये  तुम्हारा फ़ोन। और आज जब तुम्हारा फ़ोन आयातो मैंने गुस्से में  जाने क्या-क्या बोल दिया।
      
          मुझे पता है की तुम नाराज़ नहीं हुए होगेक्यों कि  तुमको तो आदत हो गयी होगीलेकिन मुझे ये भी पता है की अब शायद तुम्हारा फ़ोन कभी नहीं आयेगा।