Pages

Sunday 14 October 2012

ऐसा क्यूँ करते हो........



उस शाम बहुत इंतज़ार किया था लेकिन तुम नहीं आये, कितने फ़ोन किये थे लेकिन एक बार भी तुमने फ़ोन नहीं उठाया | इंतज़ार में रात के 9 बज गए थे, बहुत गुस्सा रहा था तुम पर लेकिन ज्यादा देर तुम पर गुस्सा हो नहीं पाए, ऐसा क्यूँ करते हो…..? हमेशा की आदत है तुम्हारी मैं आज तक नहीं समझ पाई | उस रात बिना कुछ खाए ही बिस्टर पर लेट गयी थी, रोना रहा था लेकिन ये कमबख्त आंसू गिरते ही नहीं | तुम्हारी याद में रात भर सिर्फ करवटे बदलती रही थी और जाने फिर कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला, सुबह तुम्हारे फ़ोन से मेरी आँख खुली थी, मेरे बिना पूछे ही तुमने आने का कारण बताना शुरू कर दिया था | खैर रात गयी बात गयी कारण बनावटी था या जायज़ मुझे पता नहीं, लेकिन मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया था, कुछ देर और बात करने के बाद तुमने फ़ोन रख दिया था, में भी ऑफिस के लिए तैयार होने लगी थी |

ना जाने क्यूँ आज ऑफिस में भी मन नहीं लग रहा था, सारा वक़्त तुम्हारे बारे में सोचते रही थी | आज सचमुच में, मैं  परेशां थी, तुम से फुर्शत मिली तो काम में उलझ गयी | पूरा दिन निकल गया था, और तुम्हारा एक बार भी फ़ोन नहीं आया था, बार-बार मैं मोबाइल की स्क्रीन देखती थी की कंही मुझसे कॉल मिस तो नहीं हो गयी, लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी | शाम हो गयी थी ऑफिस का काम भी लगभग ख़त्म हो चूका था, लेकिन मेरा काम अभी तक तक ख़त्म नहीं हुआ थामैं अब भी अपने आने वाले कल के बारे में सोच रही थी, क्या मेरा तुम्हारे साथ ताउम्र सही रहेगा...? क्या तुम मेरा उतना ही ख्याल रख सकोगे जितना शुरुआती दिनों में रखते थे | हाँ ...वो शुरुआती दिन कितने हसीं थे, तुम मेरी एक-एक बात का ख्याल रखते थे, उन दिनों तुमने मेरे चेहरे पर एक बार भी उदासी नहीं आने दी, कितने वादे किये थे मुझे खुश देखने के लिए जो यकीनन सरे फ़जूल थे | लेकिन फिर भी मैं खुश थी, की मैं उन आम लड़कियों में नहीं हूँ जो अपने बॉयफ्रेंडओं से परेशान रहती थी | और अब मैं भी उनमें से के हूँ |

तुम्हारे और आने वाले कल के ख्यालों मेंमैं ऐसा खो गयी थी की घर कब गया पता ही नहीं चला, घर पहुँचते ही मैंने सब से पहले फ़ोन की स्क्रीन देखी, लेकिन वो पहले की ही तरह मुंह चिढ़ा रही थी | शाम का कोई 6-6:30 बजा हुआ था और अब तक तुमको मेरी सुध नहीं आयी थी | क्या तुम मुझसे बोर हो गए थे या कोई दूसरा चेहरा पसंद आने लगा था |

तो फिर किस हैशियत से तुम प्यार की बड़ी-बड़ी बाटें किया करते थे, वक़्त की पाबंदगी के उपर तुमने लम्बा-चौड़ा लेक्चर दिया था, और आज इन सब को तुमने एक हाशिये पर रख दिया | क्यूँ निखिल....? क्यूँ किया ऐसा....?


Tuesday 25 September 2012

काश......!!!

कॉलेज के इलेक्शन के टाम पर देखा था, लम्बा कद, क्लीन शेव चेहरा, सुडौल कद-काठी, शायद अपने ग्रुप को कुछ समझा रहा था, सच में देखते ही कुछ अजीब सा हुआ, बैनरो और पमप्लेटो से उसका नाम पता चला |
तीन-चार रोज़ बाद वो अचानक मेरे सामने खड़ा था, दिल धक्क से हो गया, क्या बात करुँगी मैं इससे, मैं इतना सोच ही पाई थी की वो अपना पमप्लेट मुझे दे कर चला गया, मैं सिर्फ आहें भर कर रह गयी थी,  कॉलेज आते-जाते कई मर्तबा उस से नज़रे मिलती थी, वो भी हाय बोलता, मैं भी हेल्लो.. बोल के रुक जाती, कभी फुर्सत से बात नहीं हुई, लेकिन दिन में एक बार उसको देख लेना अच्छा लगता था, वो भी दिन की शुरुआत में, ये तो और गुदगुदाता था, कोशिश कई बार की, कि उससे बात करूँ, लेकिन उसके आस-पास जमावड़ा इतना होता कि हिम्मत ही टूट जाती, कई बार तो एक्सईटमेंट में उपर वाले से दुआ भी मांग ली, ''ये अकेला कब मिलेगा...?'' इलेक्शन हो चुके थे, परिणाम आ गया था, लेकिन ये क्या..? नतीजा बिलकुल उलट था वो इलेक्शन नहीं जीत सका | कुछ रोज़ बाद मैंने उसे अकेले बैठे देखा, एक पल तो में खुश हो गयी  लगा कि भगवान् ने मेरी सुन ली, लेकिन दुसरे ही पल दुःख भी हुआ, दुआ कबूल होनी थी लेकिन ऐसे नहीं | खैर मैंने उसे देख हाय बोला उसने भी हाय का जवाब अच्छे से दिया, हम मिले, दो काफी आर्डर की, लेकिन मैं अब भी अपने दिल की बात नहीं बोल पा रही थी, शायद लड़की थी इसलिए |
तभी उसका फ़ोन बजा, शायद किसी लड़की का था, निखिल ने उसे अपनी गर्लफ्रेंड बताया और मुझे बाय बोल कर चला गया, मैं तो कुछ देर वहां ऐसे ही बैठी रही अपना एकतरफ़ा प्यार अपने पास लिए |
बहुत अच्छा एहसास था वो, कि किसी के प्यार में होना, उसके बारे में सोचना, उसकी बातें करना | जो, सच पूछिए तो सब बिखर गए थे, आँखों से आंसू क्यूँ नहीं आये ये आज तक समझ नहीं आया | शायद एकतरफा था इसलिए | खैर कुछ भी हो, लेकिन हम आज भी मिलते है, वैसी ही हाय-हेल्लो होती है, इस बार वो फिर से इलेक्शन में खड़ा हो रहा है | अब वो फिर से जमावड़े के बीच में खड़ा है, लेकिन अब इच्छा नहीं कि  ''काश ये अकेला मिले......!!!''

Tuesday 28 August 2012

सहारा......!!!

कई बार कोशिश की, की तुमसे कोई बात हो जाये, लेकिन तुम्हारी व्य्स्तता ने मौका ही नहीं दिया। तुम हमेशा की तरह जल्द बाज़ी में ही रहे, कभी किसी काम से तो कभी किसी काम से। एक पल के लिए भी नहीं सोचा की हमारा भविष्य क्या होगा ?  और.....,  आज भी तुमको जाने की जल्दी थी, लेकिन में आज तुमको घर ले ही आई। मुझे तुम्हारा चेहरा पढना आता है तुम बे-मन से आये थे, लेकिन में आज बहुत खुश थी, हम साथ रह तो नहीं सकते थे लेकिन कुछ पल साथ बैठ तो सकते थे। तुम्हारी ख़ामोशी बहुत कुछ कह जाती है मैंने जल्दी से तुमको तकिया दिया जिस से तुम आराम से बैठ सको। लेकिन मुझे ये भी मालूम था की तुम तकिये के सहारे आराम से सिगरेट जला लोगे, क्यूँ पिते हो इतनी, जब  अस्थमा है तुमको।

आखिर मुझे ही ये शांति भंग करनी पड़ी, ''तो क्या सोचा निखिल शादी के बारे में ?''  हाँ, मुझे तुम्हारा जवाब पता था ,लेकिन क्या करे ये दिल नहीं समझता, नहीं समझता की अब हम उन्हें पसंद नहीं है, उनकी ज़िन्दगी में कोई और आ चूका है वो अपने माता-पिता की बातों को जयादा तवाजो देंगे। और तुमने शयेद सवाल सुना भी नहीं था। सिगरेट और मोबाइल पर गेम ही खेलते रहे थे तुम। 

आज तुमसे बहुत बात करने का मन था, लेकिन तुमने मेरी तरफ निगाह उठा कर भी नहीं देखा, क्या इतने बुरे हो गए है हम, क्या है उसके पास जो हम आपको नहीं दे पाए, बस कुछ रूप ही तो सुन्दर है उसका। कैसे समझाये हम आपको, की आपकी कमी बहुत खलती है, दिन और रात में कोई फर्क ही नहीं रह गया है,ये निगाहें सिर्फ आपका ही रास्ता देखती है।

तुम कुछ बिना बोले ही चले गए थे, हमेशा मुझ से दूर जाते वक़्त मेरे सर पर हाथ रखते थे, और आज तो हमेशा के लिए जा रहे थे, आज उस हाथ की मुझे बहुत जरूरत थी। यकीन मानिये निखिल साब हम उस हाथ के सहारे ही ताउम्र ज़िन्दगी काट लेते। 
 

Monday 27 August 2012

अजीब रिश्ते...जिनके नाम नहीं !!!

  आज में, गुजरे कल के पन्नों पर - हर जगह अनजानी आस के पीछे हमारा भागना - दोड़ना बना है। कहीं, किसी रोज़ किसी  मोड़ से गुजरते  हुए , कभी कोई आवाज़ नाम ले कर पुकारती है, हम ठिठकते है, मुड़ते है और ठहरते  है, उस आवाज़ का चेहरा तलाश लेने के लिए, तभी पाते है की वहां कोई नहीं है !  एक शख्स केवल   भावनाओं में है। उसका कोई जिस्म नहीं। दरसल उसकी कोई आवाज़ भी नहीं है । सिर्फ, एक सोच है, जो घेरे हुए है

मुझे अच्छे से याद है जब में आंठवीं  का छात्र था, मुझे अपनी आर्ट टीचेर से प्यार हो गया था, यहाँ पर प्यार शब्द उचित नहीं है, शाएद उनके प्रति एक लगाव हो गया था, उनका होना न होना मुझे व्याकुल और खुश रखता था। हमेसा इंतज़ार रहता की पांचवां पिरियड  कब होगा। कब वोह आयेंगी और हमें जाने क्या-क्या बना के शिखायेंगी। बचपन का मासूम मन हमेसा उनके बारे में सोचता था,लेकिन कभी अपनी भावनाएं, अपनी हसरत हम बता ही नहीं पाए,  क्योंकि...ये रिश्ते सही नहीं समझे जाते ।

जब हम प्यार में होते है, तब कहते है- हाँ!  ''तुम वही हो जिसे मैंने ख्वाब में देखा था।'' लेकिन ये बात सच्ची नहीं होती। प्रेम में ज्यादातर एक इंसान अपने साथी पर इछाव का चेहरा थोप रहा होता है। कुछ लोग यह कह कर ये रिश्ते तोड़ देते है की तुमने अपनी कल्पना मेरे अस्तित्व पर थोप दी है, पर ऐसी कोशिशे होती है बार बार। आखिर, कोई अपनी कल्पनाओं को एकदम नकार भी नहीं सकता न !


Wednesday 22 August 2012

For People....!!!

 For people who love to find beauty in everything, who are inspired by life and all that goes with it, and who believe in love and hope and exhilaration. 

For people who believe that happy endings exist, that life is a road trip, that ice-cream makes things better, and that love is more than just a four letter word. 

For people who live to inspire, who love to see others smile, and who laugh just for the heck of it.

A celebration of dreams, of hope, of love, of life. For you............ 

Tuesday 21 August 2012

Groundy truth......!!!


Life, has learned many things and many things we have learned.....

We also sometimes see people used to think it is to be man. But we continue on this path as it became due. Sometimes that happens and changed to live life... these sleeping only dreamed arises what the eyes have changed over time. We came out of the house thinking of the world, even our name on a star shining Sky. We also will be identified in people, but now everything has changed, our thinking, our approach everything ... I felt that all these symptoms, did not think we were passing ....


Every one has the right to have sparked something, and by accident we do every thing we dreamed and came to Pune and soon get coloured into Pune's life, but we did not know we lost in the streets here, even not found myself.......... 


Pune's colorful evenings, overnight moving roads, camp's Iranian tea shops and a swarm of girls in Koregaon Park, will not know can we came out all of these things....and the dreams those eyes, gone some where even don't know what kind of dream.


We spent four years of our life by doing fun and laugh. When I got result, then we sudden realized that what we had done ? And it feels like I stood where from where I started. It takes a few days, did not understand how to do and what to do? My courage my confidence gone some where.  It takes a year to understands all the things and after that we decided to move from here, from the soo called Pune. Some courage came up and we cover up our self we started from Pune to Mumbai and have left.....


At the time when we reached Mumbai, we saw people, a lots of peoples, arounds me, they are running as faster as they can, even we had not seen so many people in our village fair. But we were not a chicken hearted and moved ahead with hope. When we stayed one of my friends flat still we were struggling with lots of thoughts, we want something bigger, some thing better, something special, and during this period we rush to Mumbai's hotty-sotty places like Nariman point, Chupati, Haji Ali, and of course my favourite Sanjay Dutt house. We used to sit on the bank of sea in Nariman point with a cup of tea and a cigarette and start thinking about  what to do and how to do..?  But we were aware about groundy truth. Each and every move started from the ground level, and understood this thing takes a long time. And finally we stoped thinking and start to do something......


Now a days every thing is going a lil bit fine. and hope it'll continue.......but still has a dream to emblazon our name in sky.