Pages

Tuesday 28 August 2012

सहारा......!!!

कई बार कोशिश की, की तुमसे कोई बात हो जाये, लेकिन तुम्हारी व्य्स्तता ने मौका ही नहीं दिया। तुम हमेशा की तरह जल्द बाज़ी में ही रहे, कभी किसी काम से तो कभी किसी काम से। एक पल के लिए भी नहीं सोचा की हमारा भविष्य क्या होगा ?  और.....,  आज भी तुमको जाने की जल्दी थी, लेकिन में आज तुमको घर ले ही आई। मुझे तुम्हारा चेहरा पढना आता है तुम बे-मन से आये थे, लेकिन में आज बहुत खुश थी, हम साथ रह तो नहीं सकते थे लेकिन कुछ पल साथ बैठ तो सकते थे। तुम्हारी ख़ामोशी बहुत कुछ कह जाती है मैंने जल्दी से तुमको तकिया दिया जिस से तुम आराम से बैठ सको। लेकिन मुझे ये भी मालूम था की तुम तकिये के सहारे आराम से सिगरेट जला लोगे, क्यूँ पिते हो इतनी, जब  अस्थमा है तुमको।

आखिर मुझे ही ये शांति भंग करनी पड़ी, ''तो क्या सोचा निखिल शादी के बारे में ?''  हाँ, मुझे तुम्हारा जवाब पता था ,लेकिन क्या करे ये दिल नहीं समझता, नहीं समझता की अब हम उन्हें पसंद नहीं है, उनकी ज़िन्दगी में कोई और आ चूका है वो अपने माता-पिता की बातों को जयादा तवाजो देंगे। और तुमने शयेद सवाल सुना भी नहीं था। सिगरेट और मोबाइल पर गेम ही खेलते रहे थे तुम। 

आज तुमसे बहुत बात करने का मन था, लेकिन तुमने मेरी तरफ निगाह उठा कर भी नहीं देखा, क्या इतने बुरे हो गए है हम, क्या है उसके पास जो हम आपको नहीं दे पाए, बस कुछ रूप ही तो सुन्दर है उसका। कैसे समझाये हम आपको, की आपकी कमी बहुत खलती है, दिन और रात में कोई फर्क ही नहीं रह गया है,ये निगाहें सिर्फ आपका ही रास्ता देखती है।

तुम कुछ बिना बोले ही चले गए थे, हमेशा मुझ से दूर जाते वक़्त मेरे सर पर हाथ रखते थे, और आज तो हमेशा के लिए जा रहे थे, आज उस हाथ की मुझे बहुत जरूरत थी। यकीन मानिये निखिल साब हम उस हाथ के सहारे ही ताउम्र ज़िन्दगी काट लेते। 
 

No comments:

Post a Comment