आज में, गुजरे कल के पन्नों पर - हर जगह अनजानी आस के पीछे हमारा भागना - दोड़ना बना है। कहीं, किसी रोज़ किसी मोड़ से गुजरते हुए , कभी कोई आवाज़ नाम ले कर पुकारती है, हम ठिठकते है, मुड़ते है और ठहरते है, उस आवाज़ का चेहरा तलाश लेने के लिए, तभी पाते है की वहां कोई नहीं है ! एक शख्स केवल भावनाओं में है। उसका कोई जिस्म नहीं। दरसल उसकी कोई आवाज़ भी नहीं है । सिर्फ, एक सोच है, जो घेरे हुए है
मुझे अच्छे से याद है जब में आंठवीं का छात्र था, मुझे अपनी आर्ट टीचेर से प्यार हो गया था, यहाँ पर प्यार शब्द उचित नहीं है, शाएद उनके प्रति एक लगाव हो गया था, उनका होना न होना मुझे व्याकुल और खुश रखता था। हमेसा इंतज़ार रहता की पांचवां पिरियड कब होगा। कब वोह आयेंगी और हमें जाने क्या-क्या बना के शिखायेंगी। बचपन का मासूम मन हमेसा उनके बारे में सोचता था,लेकिन कभी अपनी भावनाएं, अपनी हसरत हम बता ही नहीं पाए, क्योंकि...ये रिश्ते सही नहीं समझे जाते ।
जब हम प्यार में होते है, तब कहते है- हाँ! ''तुम वही हो जिसे मैंने ख्वाब में देखा था।'' लेकिन ये बात सच्ची नहीं होती। प्रेम में ज्यादातर एक इंसान अपने साथी पर इछाव का चेहरा थोप रहा होता है। कुछ लोग यह कह कर ये रिश्ते तोड़ देते है की तुमने अपनी कल्पना मेरे अस्तित्व पर थोप दी है, पर ऐसी कोशिशे होती है बार बार। आखिर, कोई अपनी कल्पनाओं को एकदम नकार भी नहीं सकता न !
मुझे अच्छे से याद है जब में आंठवीं का छात्र था, मुझे अपनी आर्ट टीचेर से प्यार हो गया था, यहाँ पर प्यार शब्द उचित नहीं है, शाएद उनके प्रति एक लगाव हो गया था, उनका होना न होना मुझे व्याकुल और खुश रखता था। हमेसा इंतज़ार रहता की पांचवां पिरियड कब होगा। कब वोह आयेंगी और हमें जाने क्या-क्या बना के शिखायेंगी। बचपन का मासूम मन हमेसा उनके बारे में सोचता था,लेकिन कभी अपनी भावनाएं, अपनी हसरत हम बता ही नहीं पाए, क्योंकि...ये रिश्ते सही नहीं समझे जाते ।
जब हम प्यार में होते है, तब कहते है- हाँ! ''तुम वही हो जिसे मैंने ख्वाब में देखा था।'' लेकिन ये बात सच्ची नहीं होती। प्रेम में ज्यादातर एक इंसान अपने साथी पर इछाव का चेहरा थोप रहा होता है। कुछ लोग यह कह कर ये रिश्ते तोड़ देते है की तुमने अपनी कल्पना मेरे अस्तित्व पर थोप दी है, पर ऐसी कोशिशे होती है बार बार। आखिर, कोई अपनी कल्पनाओं को एकदम नकार भी नहीं सकता न !
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