यकीन मानो जो कुछ भी कहा बस गुस्से मे ही कहा, क्या करे तुम पर इतना गुस्सा जो आ रहा था। तुम्हे चोट पहुँचाने या दर्द देने की मेरी कोई मंशा नहीं थी, बस तुम्हारा नाम मोबाइल पर फ़्लैश हुआ और मेरा गुस्सा सातवें असमान पर। और क्यूँ न करे तुम पर गुस्सा तुम हो इस लायक आज पुरे दो महीने बाद तुमने फ़ोन किया था, क्या इन साठ दिनों में तुम्हे मेरी कभी याद नहीं आई, एक पल के लिए भी तुम्हे नहीं लगा की हमसे बात कर लें, और आज फ़ोन करके पूछते हो ''कैसी हो ?'' तुमको क्या लगता है, कैसी होउंगी मै ? अच्छी या बुरी हालात में, और तुमको इससे फर्क भी क्या पड़ता है, कि मै किस हालात में हूँ।
माना की हम दोस्त है और उस रिश्ते तक हम नहीं पहुंचे है, लेकिन फिर भी क्या एक दोस्त अपने दोस्त की हाल-खबर नहीं ले सकता, और जब मै कोशिश करती हूँ तब तुम कभी फ़ोन नहीं उठाते, कभी-कभी लगता है जानबूझ कर फ़ोन नहीं उठाते हो, मन तो करता है तुम्हारे फ़ोन में घुस कर तुम्हारा मुहं तोड़ दूँ।
कल गयी थी मै तुम्हारे फ़्लैट पर लेकिन ताला लगा देख कर वापस आ गयी, पहले तो हिम्मत हुई की आस-पास के लोगो से तुम्हारे बारे में पूछूँ पर फिर लगा किस हैशियत से तुम्हारे बारे में पूछूंगी ? गलती तुम्हारी भी नहीं है, तुम हर सम्बंधों की सीमा रेखा जानते हो और उसी में खुश रहना भी, लेकिन मेरा क्या, मै तो अपने इस रिश्ते को एक नाम देना चाहती हूँ, एक दूसरी पहचान देना चाहती हूँ और कही न कही तुम्हे भी पता है ऐसा मुझे लगता है। कही इसी लिए तो तुम मुझसे ........निखिल ये दिल सिर्फ धडकने के लिए नहीं होते है, ये भी किसी से जुड़ना चाहते है, ये भी कुछ महसूस करते है, और शायद मेरा दिल तुमसे जुड़ गया है, तुमको महसूस करने लगा है। जानते हो, हर एक अच्छे रिश्तों की शुरुआत दोस्ती से होती है बाद में वो मुकम्मल होते है। और आज मै कबूल करती हूँ कि मै तुम्हे चाहती हूँ। तुम्हारी तमाम हरकते जो मुझे अच्छी नहीं लगती थी, उनको भी जब अकेली होती हूँ तो सोच कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
पर मुझे तुमसे शिकायतें भी बहुत है, जो शायद जायज भी है, एक लड़की होने के नाते मेरे पास शिकायतों का एक पुलिंदा है पर मै आज उन सारी शिकायतों को दरकिनार करती हूँ। मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए, मुझे नहीं जानना कि मेरा और तुम्हारा भविष्य कैसा होगा, मुझे नहीं जानना की ये रिश्ता मुकम्मल होगा भी या नहीं, बस दो घडी तुमसे बात कर लूँ मेरे लिए वही बहुत है, लेकिन तुम्हारा कुछ अता-पता हो तब तो मै तुम से बात करूँ। पिछली मर्तबा फ़ोन किया था कि कहीं मिलते है। एक साल होने को आ रहा तुमसे मिले हुए, और फिर मै तुम्हारा हर दिन हर पल इंतेज़ार करती रही, लेकिन न तुम आये न तुम्हारा फ़ोन। और आज जब तुम्हारा फ़ोन आया, तो मैंने गुस्से में न जाने क्या-क्या बोल दिया।
मुझे पता है की तुम नाराज़ नहीं हुए होगे, क्यों कि तुमको तो आदत हो गयी होगी, लेकिन मुझे ये भी पता है की अब शायद तुम्हारा फ़ोन कभी नहीं आयेगा।
माना की हम दोस्त है और उस रिश्ते तक हम नहीं पहुंचे है, लेकिन फिर भी क्या एक दोस्त अपने दोस्त की हाल-खबर नहीं ले सकता, और जब मै कोशिश करती हूँ तब तुम कभी फ़ोन नहीं उठाते, कभी-कभी लगता है जानबूझ कर फ़ोन नहीं उठाते हो, मन तो करता है तुम्हारे फ़ोन में घुस कर तुम्हारा मुहं तोड़ दूँ।
कल गयी थी मै तुम्हारे फ़्लैट पर लेकिन ताला लगा देख कर वापस आ गयी, पहले तो हिम्मत हुई की आस-पास के लोगो से तुम्हारे बारे में पूछूँ पर फिर लगा किस हैशियत से तुम्हारे बारे में पूछूंगी ? गलती तुम्हारी भी नहीं है, तुम हर सम्बंधों की सीमा रेखा जानते हो और उसी में खुश रहना भी, लेकिन मेरा क्या, मै तो अपने इस रिश्ते को एक नाम देना चाहती हूँ, एक दूसरी पहचान देना चाहती हूँ और कही न कही तुम्हे भी पता है ऐसा मुझे लगता है। कही इसी लिए तो तुम मुझसे ........निखिल ये दिल सिर्फ धडकने के लिए नहीं होते है, ये भी किसी से जुड़ना चाहते है, ये भी कुछ महसूस करते है, और शायद मेरा दिल तुमसे जुड़ गया है, तुमको महसूस करने लगा है। जानते हो, हर एक अच्छे रिश्तों की शुरुआत दोस्ती से होती है बाद में वो मुकम्मल होते है। और आज मै कबूल करती हूँ कि मै तुम्हे चाहती हूँ। तुम्हारी तमाम हरकते जो मुझे अच्छी नहीं लगती थी, उनको भी जब अकेली होती हूँ तो सोच कर चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।
पर मुझे तुमसे शिकायतें भी बहुत है, जो शायद जायज भी है, एक लड़की होने के नाते मेरे पास शिकायतों का एक पुलिंदा है पर मै आज उन सारी शिकायतों को दरकिनार करती हूँ। मुझे तुम से कुछ नहीं चाहिए, मुझे नहीं जानना कि मेरा और तुम्हारा भविष्य कैसा होगा, मुझे नहीं जानना की ये रिश्ता मुकम्मल होगा भी या नहीं, बस दो घडी तुमसे बात कर लूँ मेरे लिए वही बहुत है, लेकिन तुम्हारा कुछ अता-पता हो तब तो मै तुम से बात करूँ। पिछली मर्तबा फ़ोन किया था कि कहीं मिलते है। एक साल होने को आ रहा तुमसे मिले हुए, और फिर मै तुम्हारा हर दिन हर पल इंतेज़ार करती रही, लेकिन न तुम आये न तुम्हारा फ़ोन। और आज जब तुम्हारा फ़ोन आया, तो मैंने गुस्से में न जाने क्या-क्या बोल दिया।
मुझे पता है की तुम नाराज़ नहीं हुए होगे, क्यों कि तुमको तो आदत हो गयी होगी, लेकिन मुझे ये भी पता है की अब शायद तुम्हारा फ़ोन कभी नहीं आयेगा।
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