Pages

Tuesday 22 January 2013

तुम समझते क्यूँ नहीं.....??

                     तुम  समझते नहीं हो  में तुम समझना नहीं  चाहते हो, ये गाँव  है, यहाँ सब कुछ नहीं चलता है । यहाँ लोगों का अपने काम पर ध्यान कम और दूसरों के काम पर ध्यान ज्यादा रहता है। यहाँ ज़िन्दगी, तौर-तरीके सब पुराने हिसाब से चल रहे है, एक-दो ने बदलने की कोशिश की तो वोह मुफ्त ही बदनाम हो गए । और एक तुम हो जब भी मिलते हो शिकयतों का पुलिंदा खोल कर बैठ जाते हो, फ़ोन नहीं करती, छत पर नहीं आती, स्कूल आते-जाते वक़्त ठीक से बात नहीं करती और न जाने क्या क्या ? तुम्हे क्या पता किस बैचैनी से हम भी गुजरते है, चाहते है वो सब करना जो तुमको अच्छा लगता है, लेकिन डरते है न जाने किस से ?
                      रोज़ शाम को तुम मिलने आते हो, तुमको देख कर दिल सहम जाता है की ऐसा न हो कि कोई हमें देख ले और चोरी पकड़ी जाये और इसी डर के मरे जुबां पर ताले लग जाते है, और  जिस दिन तुम नहीं आते हो उस दिन निगाह सिर्फ तुम्हे ही ढूढती। और तुम भी तो मेरे जैसे ही हो, उस दिन कितना शर्मा रहे थे जब तांगे में हम-तुम पास पास बैठे थे शर्म से चेहरा लाल और आँखें ज़मीन में गडाये जा रहे थे , और तुमने क्या कहा था ''दूर बैठो मुझे यहाँ सब जानते है।'' में तो लड़की हूँ, इस लिए डरती हूँ लेकिन तुम तो लड़के हो तुम इतना क्यूँ शर्मा रहे थे। सच, बहुत तेज़ से हंसना आ रहा था तुम्हारी उस हरकत पर ।        
                      कभी-कभी उपर वाले का शुक्रिया अदा करती हूँ कि मुझे तुम  जैसा कोई चाहने वाला मिला, जो शिकायत तो करता है लेकिन रूठता नहीं है। भले गुस्से में ही सही मेरी मजबूरी जनता है, समझता है। और कुछ देर बाद फिर मुझे हसरत भरी निगाह से देखता है। तुम्हारी तड़प में समझ सकती हूँ क्यूंकि में भी उसी तड़प  में जल रही हूँ। में भी आना चाहती हूँ तुम्हारे पास, खो जाना चाहती हूँ दो पल के लिए तुम्हारे आगोश में, लेकिन फिर वही डर जो रह रह कर मेरा पीछा नहीं छोड़ता। शायद जो आपा ने  किया और उसके बाद जो कुछ भी हुआ  उसने मुझे तोड़ कर रख दिया 
                      मेरे कदम बढ गए है तुम्हारी तरफ फिर न जाने कौन सी चीज मुझे रोक रही है। कई बार तो जी में आता है सब कुछ किस्मत पर छोड़ दूँ, जो होगा जैसा होगा देखा जायेगा, कुछ हद तक छोड़ भी दिया है, लेकिन किस्मत भी उनका साथ देती है जो हाथ-पाँव मरते है। और कभी-कभी किस्मत पर रोना भी आता है, कि काश हमारे धर्म एक होते, हमारे रिवाज़ एक होते, हम भी औरों की तरह ........
                      खैर छोड़ो लड़की हूँ शायद इसलिए इतना सोचती हूँ, लेकिन तुम भी बिल्कुल न समझ हो निखिल जो मेरी आँखे नहीं पढ पते हो, लोग सच ही बोलते है, लड़के ज़ज्बातों को नहीं समझते सिर्फ उनसे खेलते है। लेकिन मुझे पता है की तुम उन जैसों की तरह नहीं हो तभी तो हम हर वक़्त तुम्हारी तरफ खीचते है। 

1 comment: